अब सवाल यह उठता है कि फ्रैक्चर कब होता है? आमतौर पर हड्डी में फ्रैक्चर तब होता है जब हड्डी की क्षमता से ज्यादा वजन वाली चीज हड्डी पर गिर जाती है या हड्डी पर किसी तरह का दबाव आने लगता है और वह उस दबाव को सहन नहीं कर पाती है। हड्डी में फ्रैक्चर के कारण विभिन्न प्रकार के होते है लेकिन इसका सबसे आम कारण होता है हड्डियों का कमज़ोर होना। बुज़ुर्गो की अगर हड्डी में फ्रैक्चर होता है तो उनको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कई बार बुज़र्ग़ो के जोड़ों वाले हिस्सों में फ्रैक्चर ठीक से जुड़ नहीं पाते है। इस कारण उन्हें जिंदगी भर डिसएब्ल्ड की तरह रहना पड़ता है। कई बार शरीर में कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों को दोबारा जोड़ने में अधिक समय लगता है। इसलिए बुजुर्गों को कोशिश करनी चाहिए कि उनको फ्रैक्चर ना होने पाए लेकिन अगर हो भी जाता है तो उसको बेहतर तरीके से प्रबंधित करना चाहिए। कई बार उनको #गरिएट्रिकआर्थोपेडिकसर्जन की भी आवश्यकता हो सकती है।
आमतौर पर बढ़ती उम्र के साथ-साथ हड्डियां कमज़ोर होने लगती है। पुरुषों की तुलना मे महिलाओ की हड्डियों और भी अधिक कमजोर हो जाती है। हड्डी के कमज़ोर होने के कारण ही वे आसानी से टूट भी जाती है। अगर एक बार बुज़ुर्ग व्यक्ति की हड्डी टूट जाती है तो उसे जोड़ना मुश्किल हो जाता है। अगर ऐसा होता है तो उनको #जयपुरमेंगरिएट्रिकआर्थोपेडिकहॉस्पिटल मे अपना इलाज कराना चाहिए। देखा जाएं तो बुज़ुर्गो को फ्रैक्चर से सम्बंधित मामलों में विशेष ध्यान देने की ज़रूरत होती है। एक अनुमान के मुताबिक बुजुर्गों के गिरने पर उनके हड्डी टूटने का खतरा ज्यादा रहता है। सबसे ज्यादा बुज़ुर्गो को बाथरूम या पानी वाली जगह पर फिसलकर फ्रैक्चर होता है। ऐसे में जरूरी है कि बाथरूम में पकड़ने के लिए हैंडल लगाए जाएं। साथ ही सीढ़ियों पर चलने के लिए रेलिंग का प्रयोग करें। घर में फर्श गिला न हो इसका ध्यान रखें। फिसलने से ज्यादातर बुज़ुर्गो के कूल्हे की हड्डी टूटती है। इसके अलावा कुहनी और कंधे में भी फ्रैक्चर होते है। इन्हें जोड़ने के लिए प्लेट या इंप्लांट किया जाता है। लेकिन कई बार बुजुर्गों की कमजोर हड्डी होने के कारण ये ठीक से जुड़ भी नहीं पाती है।
हड्डियों की जांच है ज़रूरी
एक रिसर्च के मुताबिक बुजुर्गों में सोचने-समझने की क्षमता कम होने के साथ-साथ फ्रैक्चर होने का खतरा लम्बे समय तक बना रहता है। बढ़ती उम्र में हड्डियों की सेहत से इंसान की सोचने-समझने की क्षमता को मॉनिटर किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि उम्र के इस पड़ाव पर हड्डियों से जुड़ी जांच कराएं और समय पर इसका इलाज लें। हड्डियों को हो रहे नुकसान का सीधा असर इंसान के चलने-फिरने पर पड़ता है जिससे मृत्यु होने का खतरा बढ़ता जाता है। हाल ही मे हुई रिसर्च में यह भी पता चला है कि याद्दाश्त की समस्या यानी डिमेंशिया से जूझने वाले बुजुर्गों में हिप फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है। अमूमन ऐसा होता है कि बुजुर्ग लोग कमजोर हो रही हड्डियों को समझ नहीं पाते जिससे उन्हें फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ता जाता है। बुजुर्गों के लिए जरूरी है कि समय-समय पर बोन डेंसिटी जांच कराएं और अगर किसी प्रकार की कोई कमी सामने आती है तो बेहतर स्ट्रैटिजी के साथ उसे प्रबंधित करें।
बुज़ुर्ग कैसे रखें अपनी हड्डियों का ख्याल ?
बुज़ुर्गो के लिए ज़रूरी है कि वे अपनी हड्डियों का विशेष रूप से ध्यान रखें। अपने शरीर मे वे कैल्शियम और विटामिन-डी की कमी बिल्कुल न होने दे। वे रोजाना अपनी डाइट में कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट जैसे- टोफू, सोया मिल्क के साथ-साथ हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर का जूस, विटामिन डी का सेवन, बादाम, अखरोट, काजू, सोयाबीन, पनीर, दही और फलियां को शामिल कर सकते है। डाइट के साथ-साथ ज़रूरी है कि अन्य बातों का भी ध्यान रखे जैसे रोजाना कम से कम 15 मिनट्स तक सुबह की धूप ज़रूर ले। बेहतर होगा कि धुप कमर की तरफ से लें। इससे शरीर में विटामिन-डी की पूर्ति होती है। शरीर में कैल्शियम एब्जॉर्ब हो सके इसके लिए भी विटामिन-डी होना जरूरी है। बुज़ुर्गो के लिए ज़रूरी है कि रोजाना कम से कम आधा घंटा एक्सरसाइज ज़रूर करें। एक्सरसाइज हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाती है। दैनिक रूटीन में योग, वॉक और बॉडी मूवमेंट को ज़रूर शामिल करें।