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बुज़ुर्गो को फ्रैक्चर: बेहतर स्ट्रेटेजी से करें प्रबंधित वरना पड़ सकता है महंगा। जानिए कैसे ? बुज़ुर्गो को फ्रैक्चर: बेहतर स्ट्रेटेजी से करें प्रबंधित वरना पड़ सकता है महंगा। जानिए कैसे ?

बुज़ुर्गो को फ्रैक्चर: बेहतर स्ट्रेटेजी से करें प्रबंधित वरना पड़ सकता है महंगा। जानिए कैसे ?


Surya Hospital

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Surya Hospital 9 Min Read | 803

अब सवाल यह उठता है कि फ्रैक्चर कब होता है?

आमतौर पर, जब किसी हड्डी पर उसकी सहन क्षमता से अधिक दबाव या वज़न पड़ता है, तो वह टूट जाती है, जिसे हम फ्रैक्चर कहते हैं। फ्रैक्चर के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन बुज़ुर्गों में इसका सबसे आम कारण हड्डियों का कमज़ोर होना है।

अगर बुज़ुर्गों की हड्डियों में फ्रैक्चर हो जाता है, तो उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। कई बार जोड़ों के पास फ्रैक्चर ठीक से नहीं जुड़ते, जिससे वे ज़िंदगी भर विकलांगता जैसी स्थिति में जीने को मजबूर हो सकते हैं। इसके अलावा, शरीर में कैल्शियम की कमी की वजह से हड्डी दोबारा जुड़ने में ज़्यादा समय लेती है।

इसलिए बुज़ुर्गों को चाहिए कि वे फ्रैक्चर से बचने के लिए सावधानी बरतें, और अगर फ्रैक्चर हो भी जाए, तो उसे सही तरीके से और विशेषज्ञ की मदद से प्रबंधित करें। कई बार उन्हें Geriatric Orthopedic Surgeon की सलाह की ज़रूरत पड़ सकती है।

उम्र के साथ कमजोर होती हड्डियां

बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों का घनत्व कम होता जाता है, और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह और तेज़ी से होता है। इस वजह से हड्डियां ज़्यादा नाज़ुक हो जाती हैं और मामूली गिरावट से भी टूट सकती हैं।

अगर एक बार बुज़ुर्ग व्यक्ति की हड्डी टूट जाए, तो उसे जोड़ना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में जयपुर में गरिएट्रिक आर्थोपेडिक हॉस्पिटल में इलाज कराना लाभकारी हो सकता है।

एक अनुमान के अनुसार, बुज़ुर्गों के गिरने पर हड्डी टूटने का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है – खासकर बाथरूम या गीले फर्श पर। ऐसे में निम्नलिखित उपाय सहायक हो सकते हैं:

  •   बाथरूम में पकड़ने के लिए हैंडल लगवाएं
  •   सीढ़ियों पर रेलिंग का इस्तेमाल करें
  •   घर का फर्श सूखा रखें

सबसे अधिक फ्रैक्चर कूल्हे, कुहनी और कंधे की हड्डियों में होते हैं। इनके इलाज के लिए प्लेट या इम्प्लांट का सहारा लिया जाता है, लेकिन कमजोर हड्डियों के कारण यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है।
 

हड्डियों की समय पर जांच है ज़रूरी

एक रिसर्च के मुताबिक, बुज़ुर्गों में जैसे-जैसे सोचने-समझने की क्षमता घटती है, वैसे-वैसे फ्रैक्चर का ख़तरा बढ़ता है। हड्डियों की सेहत मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है।

यही वजह है कि उम्र बढ़ने पर नियमित रूप से बोन डेंसिटी टेस्ट कराना ज़रूरी है। इससे समय रहते समस्या का पता चलता है और उचित इलाज शुरू किया जा सकता है।

एक हालिया अध्ययन में यह भी सामने आया है कि डिमेंशिया से पीड़ित बुज़ुर्गों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम अधिक होता है।

बुज़ुर्ग कैसे रखें अपनी हड्डियों का ध्यान?

बुज़ुर्गों को अपनी डाइट और लाइफस्टाइल में निम्नलिखित बदलाव करने चाहिए:

  •     कैल्शियम और विटामिन-डी की कमी न होने दें
  •     डाइट में शामिल करें: टोफू, सोया मिल्क, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, टमाटर का जूस, बादाम, अखरोट, काजू, पनीर, दही और फलियाँ
  •     रोजाना कम से कम 15 मिनट तक सुबह की धूप जरूर लें – खासकर कमर की तरफ से
  •     विटामिन-डी कैल्शियम को शरीर में अवशोषित करने में मदद करता है
  •     रोजाना 30 मिनट एक्सरसाइज़ करें – जैसे योग, वॉक और हल्की फिज़िकल एक्टिविटी

हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने के लिए यह सब आवश्यक है।

निष्कर्ष:

बुज़ुर्गों में फ्रैक्चर को हल्के में न लें। सही रणनीति, नियमित जांच और हेल्दी लाइफस्टाइल के जरिए इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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