बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों का घनत्व कम होता जाता है, और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह और तेज़ी से होता है। इस वजह से हड्डियां ज़्यादा नाज़ुक हो जाती हैं और मामूली गिरावट से भी टूट सकती हैं।
अगर एक बार बुज़ुर्ग व्यक्ति की हड्डी टूट जाए, तो उसे जोड़ना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में जयपुर में गरिएट्रिक आर्थोपेडिक हॉस्पिटल में इलाज कराना लाभकारी हो सकता है।
एक अनुमान के अनुसार, बुज़ुर्गों के गिरने पर हड्डी टूटने का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है – खासकर बाथरूम या गीले फर्श पर। ऐसे में निम्नलिखित उपाय सहायक हो सकते हैं:
सबसे अधिक फ्रैक्चर कूल्हे, कुहनी और कंधे की हड्डियों में होते हैं। इनके इलाज के लिए प्लेट या इम्प्लांट का सहारा लिया जाता है, लेकिन कमजोर हड्डियों के कारण यह प्रक्रिया जटिल हो सकती है।
एक रिसर्च के मुताबिक, बुज़ुर्गों में जैसे-जैसे सोचने-समझने की क्षमता घटती है, वैसे-वैसे फ्रैक्चर का ख़तरा बढ़ता है। हड्डियों की सेहत मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है।
यही वजह है कि उम्र बढ़ने पर नियमित रूप से बोन डेंसिटी टेस्ट कराना ज़रूरी है। इससे समय रहते समस्या का पता चलता है और उचित इलाज शुरू किया जा सकता है।
एक हालिया अध्ययन में यह भी सामने आया है कि डिमेंशिया से पीड़ित बुज़ुर्गों में हिप फ्रैक्चर का जोखिम अधिक होता है।
बुज़ुर्गों को अपनी डाइट और लाइफस्टाइल में निम्नलिखित बदलाव करने चाहिए:
हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखने के लिए यह सब आवश्यक है।
बुज़ुर्गों में फ्रैक्चर को हल्के में न लें। सही रणनीति, नियमित जांच और हेल्दी लाइफस्टाइल के जरिए इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।